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लेखनी कविता -नज़र का मंजर -24-May-2024

नज़र का मंजर 

नज़र को नज़र लगी नज़र की,
नीम हकीम वैद्य कि फैल है नज़र भी,
यह कुछ बड़ा विचित्र दोष है संसार में,
दिल का डॉक्टर भी फैल है ईस नज़र में,
दिल कि नज़र का तो ईलाज है दिल कि ही नज़र में,
नज़र में झांकना काम नहीं करेगा,
दिल में झांकने से ही उतरेगी नज़र नज़र की।

विजय पोखरणा "यस"

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5 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 02:23 PM

👏🏻👌🏻

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HARSHADA GOSAVI

24-May-2024 09:16 PM

Beautiful

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VIJAY POKHARNA "यस"

24-May-2024 10:24 PM

Thanks 🙏

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Sarita Shrivastava "Shri"

24-May-2024 08:38 PM

Good

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VIJAY POKHARNA "यस"

24-May-2024 10:24 PM

Thanks 🙏

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